इक बार तो मेरे सामने, मेरा ऐसा हिन्दुस्तान हो!
"दुश्मनी का सफ़र इक क़दम दो क़दम
तुम भी थक जाओगे हम भी थक जाएँगे" (बशीर बद्र)
करतारपुर कोरिडोर का खुलना उस विस्तृत, अनंत आकाश का बाँहें पसार गले लगा लेना है जहाँ की ठंडी और उम्मीद भरी रात में विश्वास के असंख्य दीप झिलमिलाते हैं। यह उन सूनी आँखों से झाँकते लाखों सपनों को सच में बदल देने की सुखद आश्वस्ति भी है जहाँ एक भाई, दूसरे भाई के घर बेहिचक प्रवेश कर सकता है। जहाँ आस्था के दरबार में जाने और मत्था टेकने के लिए किसी की अनुमति की दरक़ार नहीं! ये वो लोग हैं जो दिलों में नफ़रतों की ....