ग़ज़ल का एक अर्थ 'मेहबूबा से गुफ़्तगू करना' है। किसी प्रिय से गुफ़्तगू करते वक़्त लहजे में ख़ुद-ब-ख़ुद नज़ाकत आ जाती है। यही नज़ाकत ग़ज़ल की जान भी है। जिस नाज़ुकी के साथ ग़ज़ल बड़ी से बड़ी बात बहुत सलीक़े से कह जाती है, वह बात और कहीं नहीं मिलती। कुछ-कुछ यही नज़ाकत एक महिला में भी स्वाभाविक रूप से देखने को मिलती है। सिर्फ नज़ाकत नहीं- तेवर, फ़िक्र, सरोकार, संचेतना; इन सबसे लेस रहती हैं महिलाएं और ग़ज़ल दोनों। समय और समाज का बहुत दिलेरी से सामना करती हैं ये। शायद इसी वज्ह से महिला को भी ग़ज़ल कहा गया हो।
अब अगर ग़ज़ल के सन्दर्भ में महिला की बात निकली है तो महिला के सन्दर्भ से ग़ज़ल की बात भी होनी चाहिए। साहित्य और ग़ज़ल दोनों में ही महिलाओं ने आरम्भ से ही अपनी ....