'साहित्यकार' बनना अब दो मिनिट मैगी जैसा है।
चित्रकार, मूर्तिकार, साहित्यकार या किसी भी कलात्मक कार्य से संबद्ध लोग मूलतः रचनाकार ही होते हैं और किसी भी रचनात्मक व्यक्ति का एकमात्र धर्म सृजन ही है। वह निर्माण में विश्वास रखता है, विध्वंस में नहीं! उसका जन्म नकारात्मकता के सारे भावों को दूर कर समाज में सकारात्मकता और आशावाद के प्रचार-प्रसार के लिए हुआ है। उसका सतत प्रयत्न होता है कि वह ईर्ष्या, द्वेष के विकारों को दूर करे न कि स्वयं ही उसमें लिप्त हो जाए। उसकी आँखों में सृष्टि की सुंदरता का बख़ान और ह्रदय में इसकी कुरूपता को विस्तार देने वाले तत्त्वों को ....