बच्चों की मासूमियत और भोलेपन का उड़ता रंग
परिवर्तन के इस दौर में विकास की चाल यदि कहीं द्रुतगति से चलती नज़र आती है तो वह है 'बचपन'। समय और सामाजिक परिस्थितियों से जूझते हुए बच्चों की मासूमियत और भोलेपन का चटख़ रंग कबका उड़ चुका है। आज जिसे हम 'समय के साथ चलना' कहकर धीरज धर लेते हैं, वास्तविकता में वह समय को फ़र्लांगकर ली गई मजबूर उड़ान ही है। अब बचपन की बात करते ही वो सुनहरा चित्र कहीं नहीं खिंचता जिसमें रंग-बिरंगे गुब्बारे और उसमें भरी तमाम खुशियाँ घर-बार को रौशन कर उनमें जीवन भर दिया करतीं थीं। 'बाल-दिवस' स्कूल में बंटती मिठाईयों को खा लेने या जमकर मस्ती और ....