यही वो समय है....जब बोलना आवश्यक है
इसमें कोई दो राय नहीं कि आतिशबाज़ी से वायु एवं ध्वनि प्रदूषण होता है। परेशानी इस मापदंड से है कि जो आज उचित नहीं, वह अन्य अवसरों पर कैसे सही मान लिया जाता है? शादियों के मौसम में जमकर आतिशबाज़ी होती है, नेताओं की जीत पर भी और हमारे खिलाड़ियों के अच्छे प्रदर्शन पर भी! तब इस प्रकार के विचार हमारे मस्तिष्क के द्वार क्यों नहीं खटखटा पाते?
दीवाली और आतिशबाज़ी एक-दूसरे के पूरक बन चुके हैं। फुलझड़ी, अनार ....