बदले तो हम हैं
'बचपन' शब्द सुनते ही किलकारी भरते हुए, एक हँसता खिलखिलाता चेहरा सामने आकर खड़ा हो जाता है। बच्चों का भोलापन, इनकी मासूमियत और निर्दोष मन बरबस ही अपनी ओर ध्यान आकर्षित कर लेता है। यद्यपि संवेदनाओं के मशीनीकरण की दौड़ में अब बचपन भी, शीघ्र ही परिपक्वता ओढ़ समझदारी का परिचय देने लगा है फिर भी एक उम्र तक इससे जुड़ा हर अहसास जीवित रहता है।
कहते हैं, शिक्षा ही व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करती है। लेकिन यहाँ यह जान लेना भी आवश्यक है कि ....