परीक्षाएं चल रहीं हैं। यह एक ऐसा समय है जहाँ बच्चे के साथ-साथ उसके माता-पिता भी तनाव में आ जाते हैं। तनाव ‘परिणाम’ का है। दसवीं-बारहवीं की परीक्षाओं का तो हमने हौआ ही बना रखा है लेकिन छोटी कक्षाओं की परीक्षा में भी लोग घर, सिर पर उठा लेते हैं। बच्चा, परीक्षा में कैसा प्रदर्शन करेगा! यह सोच मारे चिंता के माँ के गले से खाना नीचे ही नहीं उतर रहा। घर में जैसे अघोषित कर्फ्यू है। आना-जाना सब बंद। खेलना भी नहीं और टीवी का तो प्लग ही उखाड़ रखा है। कहीं गलती से बच्चा मोबाईल में कुछ खेलता दिख गया, फिर तो उसकी खैर नहीं! उस पर यह ताना भी कि ‘बताइए, पढ़ाई के समय जनाब को यह सब सूझा है!’ ‘कुछ दिन अच्छे से पढ़ ले, नाक मत कटा देना! याद है न, इस बार टॉप करना है!’
क्या बच्चों को इतना तनाव देना आवश्यक है? उस...