प्रज्ञा प्रकाशन, सांचोर द्वारा प्रकाशित
मार्च 2015
अंक -37
प्रधान संपादक : के.पी. 'अनमोल'
संस्थापक एवं संपादक: प्रीति 'अज्ञात'
तकनीकी संपादक : मोहम्मद इमरान खान
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अप्रैल माह के लिये परिचर्चा का विषय-
'अप्रैल फूल' भारतीय संस्कृति में कितना प्रासंगिक?
आप अपने विचार 20 मार्च तक पत्रिका की मेल आई डी
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।
- प्रीति अज्ञात
रचनाकार परिचय
प्रीति अज्ञात
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हस्ताक्षर (37)
समय की दहलीज़ पर... दस्तक !
'समय' की कमी, कहीं भावनाओं का अवरोहण तो नहीं ?
उम्मीद की लौ
दोपहर की धूप में........!
'मृत्यु'अब एक समाचार भर है!
स्वतंत्रता.....महसूस क्यों नही होती?
हड़ताल, हिंसा और हिन्दुस्तान के दुरूह वातावरण में खुद को खोजती हिन्दी
आह.…मेरे सपनों का भारत!
कुछ तो लोग कहेंगे..!
संपादकीय
मोहब्बत की क़ीमत गर है, तो मोहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं!
संपादकीय
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किताबें, विमोचन और फेसबुक
शिक्षा और व्यवस्था
संपादकीय
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हिन्दी का कृष्ण भक्ति काव्य और आधुनिकता की अवधारणा
संपादकीय
बारिश, बच्चे और स्वतंत्रता
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संपादकीय
बंद, दंगे और मानवता का आर्तनाद
कविता-कानन (1)
कविताएँ
ख़ास-मुलाक़ात (9)
"साहित्य अब संकरी घाटी नहीं, एक विस्तृत मैदान है" - आशा पाण्डे ओझा
"साहित्य अब संकरी घाटी नहीं, एक विस्तृत मैदान है" - आशा पाण्डे ओझा (भाग-2)
नाम की सार्थकता सकारात्मक जीवन के मनोबल से होती है: रश्मि प्रभा
“...आदमी के भीतर पल रहे आदमी का यही सच है!..... आदमी होने का सुख भी यही है।” (भाग -1)
“...आदमी के भीतर पल रहे आदमी का यही सच है!..... आदमी होने का सुख भी यही है।” (भाग -2)
चर्चित कवयित्री एवं कथाकार सुमन केशरी से संपादक प्रीति अज्ञात की ख़ास मुलाक़ात
ख़ास-मुलाक़ात
साक्षात्कार
साक्षात्कार
मूल्यांकन (2)
मूल्यांकन
मूल्यांकन
ग़ज़ल पर बात (1)
अप्रैल माह के लिये आमंत्रण
ख़बरनामा (12)
अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेला, दिल्ली में हमिंग बर्ड का विमोचन
विश्व पुस्तक मेला - 2015 में नवगीत पर चर्चा
स्पंदन के तत्वाधान में सफल काव्य-गोष्ठी का आयोजन
त्रिसुगंधि शिवचंद ओझा ओसियां स्मृति सम्मान समारोह एवं दो दिवसीय राष्ट्रीय साहित्यकार सम्मलेन
आई आई टी, रूड़की में काव्य-संध्या का आयोजन
साहित्यिक समाचार
ख़बरनामा
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ख़बरनामा
व्यंग्य (1)
व्यंग्य
संदेश-पत्र (1)
संदेश-पत्र
विशेष (2)
आत्म-रक्षा इतनी कठिन नहीं, जानिये दीप्ति शंकर से
सलाम, इमरान!
'अच्छा' भी होता है! (2)
व्यस्तता मन की होती है
अच्छा भी होता है
फिल्म समीक्षा (1)
फिल्म समीक्षा